गायत्री मंत्र (Gyatri mantra )
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गायत्री मंत्र |
"ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ "
"Om Bhur-Bhuvah Svah Tat-Savitur-Varenyam
Bhargo Devasya Dhimahi Dhiyo Yo Nah Pracodayaat ||"
गायत्री मंत्र का हिंदी में अर्थ :- "उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ,तेजस्वी,पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।"
प्राणस्वरूप :- हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ है। वायु पृथ्वी अग्नि जल आकाश, इन पांच तत्वों को ही प्राण बोला जाता है और इन पांच तत्वों के ऊपर में जो राज करता है उसको मन कहा जाता है। मन तीन तरह का होता है चेतन, अवचेतन, अतिचेतन। हमारे शरीर में 5 इंद्रियां होती हैं 10 ज्ञानेंद्रियां होती हैं।72000 नाड़ी होती है। 7 कुंडलियां शक्तियां होती हैं। गायत्री मंत्र जाप करने से हमारे शरीर के 24 पॉइंट प्रभावित होता है जो आंतरिक और बाहरी रूप से पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। इसी कारण गायत्री मंत्र को प्राण कहा गया है।
दुःखनाशक:-गायत्री मंत्र का जाप करने से हमारे भूतकाल, भविष्य काल या वर्तमान काल में हम जो कार्य कर रहे हैं। उसके दुखों का नाश होता है और हमें सच्ची सद्बुद्धि मिलती हैं जिसकी वजह से हम सही कार्य करने में अपना मन लगा पाते हैं।
सुखस्वरूप:-गायत्री मंत्र जाप करने से लौकिक और अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है इसी कारण इस को सुख स्वरूप कहा गया है।
श्रेष्ठ:- सकारात्मकता ऊर्जा बढ़ती जाती है जिससे शारीरिक बल , बुद्धि बल , विद्या बल , धन बल, संगठन बल ,चरित्र बल ,आत्मा बल, 7 बल जीवन को प्रकाशित, प्रतिष्ठित और संपन्न बनाने के लिए बहुत ही आवश्यकता होती है।
तेजस्वी:-जब हम गायत्री मंत्र का बार बार जाप करते हैं तो हमारा मन , हमारी आत्मा और हमारे शरीर हमारे आसपास के वातावरण में तेजस्वी का भाव उत्पन्न होता है और हम सूर्य के समान तेजस्वी होते जाते हैं। समाज में हमारा मान सम्मान में वृद्धि होता है कार्य में ध्यान लगता है। लौकिक और अलौकिक, आध्यात्मिक और भौतिक सुखों की प्राप्ति होने लगती है।
पापनाशक:- गायत्री मंत्र के जाप करने से हमारे भूतकाल वर्तमान काल और भविष्य काल में होने वाली गलतियों के प्रति सचेत हो जाते हैं।और हम अगर कोई पाप कार्य किए हो पिछले जन्म में या भूतकाल में तो पापों का नाश होता है और वर्तमान काल या भविष्य काल में हम पाप करने की प्रवृत्तियों को कम कर देते हैं। इस कारण इस को पाप नाशक भी कहा गया है।
देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें:- श्रेष्ठ और तेजस्वी बनाने वाले इस महामंत्र को अगर अपनी अंतरात्मा में धारण करते हैं तो वह परमात्मा हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ और तेजस्वी बनाने में हमारी सहायता करता है।
वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे:- जिससे हम एक अच्छे मानव बनते हैं। एक अच्छे महामानव बनते हैं। एक अच्छे कार्य करने वाले बनते हैं और अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ शुद्ध और अच्छा रखने की कोशिश करते हैं।
गायत्री मंत्र की महिमा अनंत है इसके बारे में मेरे द्वारा वर्णन करना संभव नहीं है। मैं इसके कुछ पॉइंट को ही बता पाया हूं...
आप अपने सुझाव कमेंट बॉक्स पर जरूर दीजिए इसके और अच्छे गुणों का वर्णन के बारे में।
धन्यवाद।
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