पूजा करते समय उबासी क्यों आती है | Pooja Karte Time Ubasi Aana

पूजा करते समय उबासी क्यों आती है, पूजा हिंदू धर्म में आत्मिक उन्नति, भगवान के प्रति भक्ति, और मानसिक शांति की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। पूजा के समय एकाग्रता, ध्यान और मानसिक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है। फिर भी कई बार हम पूजा करते समय उबासी लेते हैं, और यह एक सामान्य घटना बन जाती है। हिंदू धर्मशास्त्र और योग के दृष्टिकोण से उबासी लेने की इस स्थिति को समझने का प्रयास करते हैं, ताकि इसके पीछे छुपे हुए अर्थ और कारणों को समझा जा सके।

 


1. शारीरिक कारणों से उबासी आना:

उबासी आना शारीरिक प्रक्रिया है, जिसे अधिकतर लोग तब महसूस करते हैं जब वे थके हुए होते हैं या उनकी शरीर की ऊर्जा घट रही होती है। यह शरीर के स्वाभाविक और अनकांशस प्रतिक्रिया का हिस्सा है, जिसे ऑक्सीजन की कमी या शरीर की थकान के रूप में देखा जा सकता है।

जब हम पूजा करते हैं, तो हमारी स्थिति स्थिर होती है, जैसे की बैठकर या खड़े होकर एक ही स्थिति में ध्यान करना। लंबे समय तक एक स्थान पर रहने से शरीर में आराम और उबासी सकती है। इसका मतलब यह नहीं है कि पूजा या भक्ति का असर कम हो रहा है, बल्कि यह शारीरिक थकावट का संकेत है।

आधुनिक विज्ञान में इसे शरीर के संतुलन और ऑक्सीजन की आवश्यकता से जोड़ा गया है। जब हम गहरी शांति या ध्यान की स्थिति में होते हैं, तो हमारी श्वसन प्रक्रिया धीमी हो जाती है और शरीर को ज्यादा ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती, जिससे उबासी सकती है।

2. मानसिक कारणों से उबासी आना:

पूजा करते समय ध्यान या मंत्र जाप की अवस्था में मानसिक संतुलन बनाए रखना होता है। ध्यान करने के दौरान मन की स्थिति स्थिर और शांति की होती है, लेकिन कई बार मानसिक स्तर पर कोई तनाव, थकान या एकाग्रता की कमी हो सकती है।

मानसिक थकावट के कारण, पूजा के दौरान उबासी आना आम बात हो सकती है। ध्यान या पूजा की अवस्था में मानसिक उत्तेजनाएँ कम होती हैं, जिससे शरीर आराम की स्थिति में आता है और उबासी सकती है। यह संकेत हो सकता है कि व्यक्ति को अपनी मानसिक स्थिति को फिर से सक्रिय और संतुलित करने की आवश्यकता है।

अक्सर जब हम मानसिक रूप से बहुत अधिक थके होते हैं, तो पूजा के दौरान उबासी आना मानसिक शांति की प्राप्ति की दिशा में हमारे शरीर और मन का एक संकेत हो सकता है। यह अवस्था तब उत्पन्न होती है जब मानसिक शांति और ऊर्जा का प्रवाह स्थिर हो जाता है और शरीर इसे विश्राम के रूप में लेता है।

3. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उबासी:

हिंदू धर्मशास्त्र और योग के दृष्टिकोण से उबासी को एक गहरी आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है। पूजा और ध्यान के दौरान शरीर और आत्मा के बीच एक संतुलन स्थापित होता है। जब व्यक्ति ध्यान और पूजा में गहरे उतरता है, तो उसकी आत्मा और शरीर के बीच एक ऊर्जात्मक समन्वय होता है।

उबासी एक प्रकार का संकेत हो सकती है कि व्यक्ति का शरीर और मन एक गहरे ध्यान और शांति की स्थिति में प्रवेश कर रहे हैं। यह शांति शरीर को आराम देने के रूप में प्रकट होती है। भारतीय योग और तंत्र शास्त्र में इस स्थिति को "ऊर्जा का संतुलन" कहा गया है। जब किसी व्यक्ति का मन पूरी तरह से शांत और ध्यानमग्न होता है, तो यह शारीरिक रूप से भी अनुभव किया जा सकता है और शरीर इस शांति की अवस्था में विश्राम प्राप्त करता है, जिससे उबासी का अनुभव हो सकता है।

योगी और साधक इस स्थिति को सामान्य रूप से मानते हैं और इसे शरीर के ऊर्जा स्तर के रूप में देखते हैं। यह भी एक संकेत हो सकता है कि व्यक्ति आत्मिक विकास की दिशा में बढ़ रहा है, और उसकी शारीरिक अवस्था इससे मेल खा रही है।

4. भगवद गीता में ध्यान की भूमिका:

भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्मा की शांति और शरीर की स्थिति को अत्यधिक महत्व दिया है। गीता के अनुसार, जब व्यक्ति ध्यान की गहरी अवस्था में होता है, तो उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति एक स्थिरता में आती है।

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है, "योगी का मन शांत और स्थिर होता है, और वह अपने मन को नियंत्रित करने में सक्षम होता है।" जब हम पूजा करते हैं, तो हमारा मन उस स्थिरता और शांतिपूर्ण अवस्था में पहुँचने की कोशिश करता है। इस अवस्था में शरीर और मन को ऊर्जा का प्रवाह मिलता है और इससे शरीर के स्वाभाविक प्रतिक्रियाएँ, जैसे उबासी, उत्पन्न हो सकती हैं।

5. तंत्र शास्त्र और ध्यान:

तंत्र शास्त्र में पूजा और साधना की प्रक्रिया के दौरान उबासी आने को एक महत्वपूर्ण संकेत माना जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार, जब साधक गहरे ध्यान में होता है, तो उसकी ऊर्जा एक केंद्रित रूप में संचारित होती है। यह संचार शरीर के भीतर एक शांति और संतुलन की स्थिति उत्पन्न करता है, और उबासी इसके संकेत के रूप में प्रकट हो सकती है। यह भी कहा जाता है कि उबासी उस ऊर्जा के प्रवाह का प्रतीक हो सकती है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में संतुलन स्थापित करने का कार्य करती है।

6. साधक की स्थिति:

साधकों और योगियों के लिए, पूजा और ध्यान एक शारीरिक और मानसिक साधना होती है, जो आत्मा के साथ गहरे जुड़ाव की दिशा में होती है। वे मानते हैं कि जब व्यक्ति ध्यान और पूजा की अवस्था में होते हैं, तो शरीर के शारीरिक संकेत, जैसे उबासी, आत्मिक उन्नति के संकेत हो सकते हैं। इस अवस्था को समझते हुए, वे साधक इसे एक सकारात्मक और आवश्यक प्रक्रिया मानते हैं, जो आत्मा और शरीर के बीच संतुलन बनाने में सहायक होती है।

निष्कर्ष:

पूजा के दौरान उबासी आना एक सामान्य शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रिया है, जो विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकती है। हिंदू धर्मशास्त्र और योग के दृष्टिकोण से यह उबासी एक संकेत हो सकती है कि व्यक्ति की आत्मा और शरीर के बीच संतुलन और शांति की स्थिति उत्पन्न हो रही है। यह शांति के संकेत के रूप में देखा जाता है और व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति को संतुलित करने का एक तरीका हो सकता है। पूजा के दौरान उबासी का आना इसलिए एक साधारण और प्राकृतिक प्रक्रिया हो सकती है, जो साधना की गहरी अवस्था की ओर संकेत करती है।

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