पूजा करते समय गलत विचार क्यों आते हैं | puja karte samay gande vichar kyon aate hain

हिंदू धर्म में पूजा को आत्मिक शुद्धि, ईश्वर से संबंध स्थापित करने और आत्मा की उन्नति के लिए महत्वपूर्ण साधन माना गया है। पूजा करते समय मानसिक शांति, ध्यान और एकाग्रता की आवश्यकता होती है, लेकिन अक्सर देखा गया है कि इस पवित्र समय में मन में गलत विचार या नकारात्मक भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। यह समस्या कई लोगों के लिए चिंता का विषय बनती है और यह समझने की आवश्यकता है कि ऐसा क्यों होता है। हिंदू धर्मशास्त्र और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से इस विषय की गहराई में जाते हुए हम इन सवालों के उत्तर खोजेंगे।

 

पूजा करते समय गलत विचार क्यों आते हैं

1. मन की स्वाभाविक चंचलता

हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, मन एक स्वाभाविक रूप से चंचल और अस्थिर तत्व है। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है:
चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद् दृढम्। तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।
अर्थात, "हे कृष्ण! मन चंचल, अशांत और अत्यंत शक्तिशाली है। इसे नियंत्रित करना वायु को रोकने जैसा कठिन है।"

मन का स्वभाव ही इसे बार-बार विचारों के जाल में खींचता है। जब कोई व्यक्ति पूजा के दौरान शांत बैठता है, तो उसका मन उसे बाहरी दुनिया से जोड़ने वाले विचारों को उभरने देता है। इन विचारों में गलत या नकारात्मक भावनाएँ भी शामिल हो सकती हैं। यह मन का स्वाभाविक व्यवहार है जो ध्यान और साधना के दौरान अधिक प्रकट होता है।

 

2. संस्कारों और कर्मों का प्रभाव

हिंदू धर्म में संस्कार और कर्म का व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव माना गया है। संस्कार हमारे पूर्वजों, पिछले जीवन और इस जीवन के कर्मों का संग्रह होते हैं। ये संस्कार हमारे मन और विचार प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। पूजा के समय, जब व्यक्ति शांत मन से ईश्वर का ध्यान करता है, तो ये संस्कार सक्रिय हो जाते हैं और मन में गलत विचार उत्पन्न कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए:

  • पिछले जीवन के नकारात्मक कर्मों का प्रभाव।
  • वर्तमान जीवन में किए गए किसी अनुचित कार्य का पछतावा।
  • मानसिक दोष (जैसे ईर्ष्या, क्रोध, या वासना)

ये संस्कार पूजा के दौरान सामने आते हैं क्योंकि यह समय आत्मा की गहराई से जुड़ने का होता है। जैसे ही व्यक्ति भीतर की शांति पाने का प्रयास करता है, अवचेतन मन में छिपी नकारात्मकता उजागर हो जाती है।

 

3. आत्मा और माया के बीच संघर्ष

हिंदू धर्म में माया को आत्मा की आध्यात्मिक यात्रा में एक बड़ा बाधक माना गया है। माया, जिसे भौतिकता और सांसारिक इच्छाओं का प्रतिनिधि माना जाता है, व्यक्ति को ईश्वर से दूर ले जाती है। जब कोई व्यक्ति पूजा करता है, तो वह माया के प्रभाव से मुक्त होने का प्रयास करता है।

हालांकि, माया इतनी शक्तिशाली होती है कि यह व्यक्ति के मन में गलत विचार डालकर उसे पूजा से विचलित करने का प्रयास करती है।

  • जैसे लोभ, वासना, क्रोध, और अहंकार जैसे विचार।
  • सांसारिक चिंताओं और इच्छाओं की पुनरावृत्ति।

यह संघर्ष आत्मा और माया के बीच का है, जो पूजा के दौरान प्रकट होता है। यह संघर्ष आत्मा की उन्नति के लिए आवश्यक है, लेकिन इसे पार करना साधना और अभ्यास के माध्यम से ही संभव है।

 

4. मन का असामंजस्य और विचारों की अशुद्धि

पूजा के दौरान गलत विचार आने का एक बड़ा कारण मन की अशुद्धि है। मन अशुद्ध तब होता है जब व्यक्ति के भीतर नकारात्मकता, अधर्म, और मानसिक विकार मौजूद होते हैं।
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, मन की अशुद्धि को दूर करने के लिए ध्यान, प्रार्थना और तपस्या की आवश्यकता होती है।

अशुद्ध मन के लक्षण:

  • अनैतिक विचार।
  • पुराने दोष या अपराधबोध।
  • अप्रिय घटनाओं की स्मृतियाँ।

जब व्यक्ति पूजा करता है, तो ये विचार अधिक सक्रिय हो जाते हैं क्योंकि मन शांत स्थिति में अपने अंदर की सच्चाई को देखने लगता है।

 

5. मानसिक विकार और अवचेतन मन की भूमिका

मनोविज्ञान के अनुसार, हमारा अवचेतन मन (subconscious mind) वह भंडार है, जहाँ हमारे सभी अनुभव, भावनाएँ और विचार संग्रहीत होते हैं। जब व्यक्ति पूजा करता है, तो अवचेतन मन में दबे हुए नकारात्मक विचार, इच्छाएँ और भावनाएँ सतह पर सकती हैं।

इसका मुख्य कारण यह है कि पूजा एक प्रकार की आत्म-साक्षात्कार प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने भीतर झांकता है। यदि अवचेतन मन में कोई नकारात्मकता या विकार छिपा हो, तो वह इस दौरान सामने आता है।

 

6. ध्यान की कमी और मानसिक अशांति

पूजा करते समय गलत विचार आने का एक अन्य कारण ध्यान की कमी और मानसिक अशांति है।

  • यदि व्यक्ति का मन अत्यधिक व्यस्त या तनावग्रस्त हो, तो वह पूजा के दौरान शांत नहीं रह सकता।
  • मानसिक अशांति विचारों को भटकाती है और नकारात्मकता उत्पन्न करती है।

हिंदू धर्म में ध्यान और प्राणायाम को पूजा के पहले अभ्यास करने की सलाह दी गई है ताकि मन को शांत और एकाग्र किया जा सके।

 

7. भूतकाल के अनुभव और चिंता

व्यक्ति के भूतकाल के अनुभव, चाहे वे अच्छे हों या बुरे, उसकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करते हैं। पूजा के दौरान, जब मन शांत होता है, तो पुराने अनुभव और घटनाएँ मन में उभर सकती हैं।

  • यदि ये अनुभव नकारात्मक हैं, तो वे गलत विचारों के रूप में प्रकट होते हैं।
  • भूतकाल की चिंता, अपराधबोध, या किसी व्यक्ति के प्रति गलत भावनाएँ भी इस समय सक्रिय हो जाती हैं।

 

8. समाधान: मन को शुद्ध और एकाग्र कैसे करें?

(1) ध्यान और प्राणायाम

पूजा से पहले ध्यान और प्राणायाम करने से मन शांत और नियंत्रित होता है। यह विचारों की चंचलता को कम करता है और मन को शुद्ध करता है।

(2) सत्संग और पवित्र ग्रंथों का अध्ययन

सत्संग और भगवद गीता, उपनिषद, और रामायण जैसे पवित्र ग्रंथों का अध्ययन मन को सही दिशा देता है और नकारात्मकता को दूर करता है।

(3) नियमित साधना और तपस्या

नियमित साधना से मन की शुद्धि होती है। यह अभ्यास व्यक्ति को अपने अंदर छिपी नकारात्मकता को पहचानने और उसे दूर करने में मदद करता है।

(4) ईश्वर में पूर्ण समर्पण

पूजा के दौरान मन को भगवान के चरणों में समर्पित करने का अभ्यास करें। ऐसा करने से मन नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाता है।

(5) अहंकार और वासना का त्याग

मन में उठने वाले गलत विचार अक्सर अहंकार और वासना से संबंधित होते हैं। इनका त्याग करके व्यक्ति पूजा के दौरान शुद्ध और शांत रह सकता है।

 

निष्कर्ष

पूजा करते समय गलत विचार आना एक सामान्य प्रक्रिया है, जो मन की चंचलता, कर्मों के प्रभाव, और आत्मा और माया के बीच संघर्ष का परिणाम है। यह आत्मिक विकास की दिशा में एक चुनौती है, जिसे नियमित साधना, ध्यान, और ईश्वर के प्रति समर्पण से पार किया जा सकता है। हिंदू धर्मशास्त्र इस बात पर बल देता है कि मन को नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास और वैराग्य से इसे संभव बनाया जा सकता है। पूजा करते समय यदि गलत विचार आएँ, तो उन्हें स्वीकार करें, लेकिन उन पर ध्यान केंद्रित करें। धीरे-धीरे, साधना के माध्यम से मन को शुद्ध और एकाग्र किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है।

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