सफलता के सूत्र Formula of success

सफलता के सूत्र
सफलता के सूत्र


जेहि कें जेहि पर सत्‍य सनेहू।

सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू।।

तुलसीदास रचित रामायण के इस चौपाई का विस्तृत अर्थ:-रामायण काल में जब भगवान श्री रामचंद्र जी को माता सीता जब पुष्प वाटिका में देखती है तो माता सीता भगवान श्री रामचंद्र जी के प्रति पूर्ण आकर्षित हो जाते हैं। परंतु स्वयंवर में जब धनुष रखा हुआ होता है तो उस धनुष को उठाने में भगवान श्री रामचंद्र जी सक्षम है कि नहीं उसमें संदेह होता रहता है परंतु माता सीता जब पूर्ण रूप से समर्पित होती है।अर्थात ईश्वर को पाने की सच्ची श्रद्धा सच्ची समर्पित अनन्य भक्ति पूर्ण विश्वास गहरी आस्था ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाते हैं तो ईश्वर की जरूर प्राप्ति होती है।

यह सच्चा स्नेही वह तत्व है जिसके कारण किसी भी वस्तु को प्राप्त करने में संदेह नहीं रहता है। गीता में कई स्थानों पर भगवान ने कहा है अनन्य भाव से चिंतन करने वाले को मैं उनके अपशिष्ट विषय में सफलता प्रदान करता हूं। मनुष्य जिस प्रकार की इच्छा करता है। वैसे ही परिस्थिति उसके निकट एकत्रित होने लगती हैं। इच्छा एक प्रकार की चुंबकीय शक्ति है जिसके आकर्षण से अनुकूल परिस्थितियां खिंची चली आती है। जहां गड्ढा होता है वही चारों ओर से वर्षा का पानी सिमट जाता है और वह गड्ढा भर जाता है। किंतु जहां ऊंचा टीला ( अर्थात अहंकारी अज्ञानी कामचोरी आलस्यता दिशाहीन कार्य गतिशीलता में रुकावट इत्यादि। ) हो वहां भारी वर्षा होने पर भी पानी नहीं ठहरता है। इच्छा एक प्रकार का गड्ढा है जहां यह सब ओर से अनुकूल स्थितियां खींच खींचकर एकत्रित होने लगती है। जहां इच्छा नहीं वहां इतने ही अनेकों साधन मौजूद क्यों न हो पर कोई महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त नहीं होती है। सफलता में महत्वपूर्ण निर्णायक साबित होता है पुरुषार्थ अगर आपके अंदर इच्छा या अभिलाषा हैं तो आप पुरुषार्थ जरूर करेंगे और पुरुषार्थ ही आपको सफलता की मार्ग में ले जाएगा. मन में जो इच्छा प्रधान रूप से काम करती है उसे पूरा करने के लिए शरीर की समस्त शक्तियां काम करने लगती है। निर्णायक शक्ति निरीक्षण शक्ति आकर्षण शक्ति चिंता शक्ति कल्पना शक्ति आदि मस्तिष्क की अनेकों शक्तियां उसी दिशा में अपना पर यात्रा आरंभ कर देती हैं। यह शक्तियां जब सुस्त अवस्था में पड़ी होती है या विभिन्न दिशाओं में बिखरी रहती है। मनुष्य की स्थिति अस्तव्यस्त एवं नगण्य होती है। परंतु जब वह सब शक्तियां एक ही दिशा में काम करना प्रारंभ कर देती है तो एक जीवित चुंबक पत्थर को कूड़े कचरे में भी घुमाया जाए तो धातु के टुकड़े इधर-उधर बिखरे हैं। होंगे वे सब उससे चिपक जाएंगे इसी प्रकार विशिष्ट आकांक्षाएं मन में धारण किए हुए व्यक्ति अपने आकर्षण शक्ति से उन सब तत्वों को ढूंढता है और प्राप्त करता है जो लघु कणों के रूप में जहां-तहां बिखरे पड़े होते हैं। जिस व्यक्ति को पूर्ण सफलता चाहिए वह अपने विचारों दृढ़ता में रखें पुरुषार्थ का कार्य करें पुरुषार्थ अपने अंदर पैदा करें कठिनाइयों से डरे नहीं कठिनाइयों का सामना करें परास्त करने से हौसला उत्पन्न होता है। जिस प्रकार सोने को अग्नि में जलाने पर उसकी चमक दुगुनी हो जाती हैं। वैसे ही जब इंसान कष्ट में रहकर कार्य करता है तो उसकी वीरता और प्रयत्नशीलता दुगुनी हो जाती है और पूर्ण समर्पण के साथ कार्य करने से सफलता जरूर प्राप्त होता है।

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